Saturday 11 February 2012

राजस्थानी लोक संगीत की विशेष पेशेवर जातियां

जाति
विशेष
ढाढी
राजस्थान के जैसलमेंर व बाड़मेर जिले में रहने वाले ढाढी कलाकारों को मांगणियार के नाम से भी जाना जाता है। इनके प्रमुख वाद्य कमायचा व खड़ताल है।
मिरासी
मारवाड़ में रहने वाले इन कलाकारों में से अधिकतर सुन्नी संप्रदाय को मानने वाले है। भाटों की तरह ये भी वंशावलीयों का बखान करते है। सारंगी इनका प्रमुख वाद्य है।
भाट
मुख्यतः मारवाड़ में रहने पानी यह जाति अपने यजमानों की वंशावलियों का बखान करती है।
रावल
यह जाती चारणों को अपना यजमान मानती है।
भोपा
लोक देवीयों व देवताओं की स्तुती गा-बजाकर गुजर बसर करने वालों को भोपा कहते है। रावणहत्था भोपों का प्रमुख वाद्य है।
लंगा
पश्चिमी राजस्थान में राजपूतों को अपना यजमान मानने वाली लंगा जाति की गायकी में शास्त्रीय संगीत का ताना बाना है।
कंजर
घुमंतु जाति के ये कलाकार चकरी नृत्य करते है।
जोगी
यह जाति नाथ संप्रदाय को मानती है। ये भर्तृहीर, शिवाजी का ब्यावला व पंडून का कड़ा गायन में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। जोगी अपने गायन के साथ सारंगी वाद्य का प्रयोग करते है।
भवाई
यह जाती भवाई नाट्य कला एवं इसके अंतर्गत बाघाजी व बीकाजी की नाटिकाएं व स्वांग करने हेतु प्रसिद्ध है।
अन्य पेशेवर लोक संगीत जातियों में कालबेलिया, कलावंत, ढोली, राणा, राव, कामड़ व सरगरा प्रमुख है।

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