Saturday 10 September 2011

आबरू रो वेरी दारू

दूजा रे देखा देखी हरिया रे पण दिसावर कमावण री मंशा व्हेगी। हरियो पूरा मे ावा रे सागे एक स्हैर पूगगो। कैई दिनां तांई तो स्हैर री सड़कां माथै रातीवासो लिनो पर एक दिन एक फटफटिया वालो उणरे कनै आयर ढबियो। हरिया सूं कीं बंतल किनी। उणरी घरआली अर टाबर कठै बलिता रो वंग करण सारू गियोड़ा हा। 

हरियो सेठ रे कनै मजरी करण लागो। मजूरी में उणने पन्द्रे सो रिपिया मिले। इण कमाई सूं जियां तिंया घर रो टबारो चलावे पण उनै सौबत मिली तो ईसी के मजूरी री तनखा दारू में ई पूरो नीं पड़े। सगली कमाइ दारू में गमाय देवे। 

सिंझ्या ढलता ई बो बोतलड़ी अर बाटकी लेर पीवण ल्याग जावे। घर मायं लुगाई अर तीन छोरियां। मोबी बेटी बरस सोलेक री। हरिया री इण कोजी लत रे कारण चारू मां अर बेटिया भेली रोवे। हरियो दारू रा नसा में जेठे बेठो पीवे पड़ जावे। माथै कुत्तिया मूते भले। सवार रा उछे तो बो ई ढालो कुरलो ई दारू सूं ई करे। हरियो कदै कदै सेठ रे पगां पड़ जावतो तो सेठ तस खाय उठनै बीस तीस रिपिया खाणा दारू दे देवतो पर बो ुणरो भी दारू पी लेवतो। 
एक दिन अचाणक हरिया री लुगाई अर मोटी बेटी पदमा दोन्यूं सेठ रे कनै पुगगी अर हाथ जोड़ सेठ सूं विनती करण लागी। 

सेठ कीं अचपलो हो, दो लुगायां ने सांमी ऊभी देख एक वार तो चिमकगो फेरूं एक तार बांने बाको फाड़र देखण लागगो। 

उणरी नजर पदमा रे डील माथै थिर व्हैगी। चोटी सूं एडी तांई पदमा ने निरखण लागो। सेठ मन ई मन गरणांट करण लागो हरिये रे घर मांय इसौ हीरो..म्हनै भान तक नीं। हरिये घरआली फेरू बोली..सेठ जी, म्हारो धणी दारू रो बंधाणी है। पन्द्रे सौ रिपिया सूं कीं नीं सरे। तनखा में थोड़ो वधापो करो। 

सेठ मन ई मन सोच्यो..अरे अबै तो म्हैं हरिया री तनखा तीन हजार कर देस्यूं अर हरियो दारू रो बंधाणी है आ तो ओरूं म्हारे खातर चौखी बात है। सेठ मन मांय घड़े अर भांगे। फेरू बोल्यो थे लोग अबार कठै रैवौ हो, स्यात नैनी सी भाड़ी री खोली व्हैला। स्हैर है अछै तो साकड़भीड़ में दिन काढणा पड़ै पर थे लोग चावो तो म्हारे बंगला रे लारले पासे म्हारे औरूं एक मोटो घर खाली पड़ियो है बठै थै रैवास कर सको हो। हरिया री घरवाणी ने दाल में की कालो निजर आयो पण फेरूं विचारियो नीं एड़ी नीं व्है सके। सठ दयालु लखावै? सेठ दयालु दातार समझण लागी। पण उणने कांई ठाह हो कै सेठ..?

हरिया रो मेलावो भाड़ायती खोली छोड़ सेठ रे घर में रैवास कर दियो। 

अबै सेठ रोजीना हरियो रो मेलावा री साल संभाल करै अर कैवै किसी भांत री कमी बैसी व्है तो याद करजो।सेठ री खोटी निजर पद्मा माथै ही। सिंझ्या रा बो हरिया ने दारू री बोतल झैलाय देवतो। हरिया ने तो जाणै रामजी मिलिया। नसा में अणूतो चूंव व्है जावतो, मेलावो भलांई पड़ दरड़ा मांय। 

सेठ जिंया तिंया पदमा ने घरा रा चूला चौकी करण सारू हरिया री लुगाई ने राजी कर दी। इण एवज में कीं मंजरू फेरूं देवण रो लालच दे दियो।

अजै तांई सगलो ई धोलो धोलो दूध हो। एक दिन री बात पद्मा बंगला में आंगणै पोछो फैरे ही अर सेठ डाठी करै हो। सेठ री नजिर उणियारा मांय सूं पदमा रे डील माथै पड़गी अर वो चैताचूक व्है निरखम लागगो। एकाध चीरो गालड़ा रै काढ़ दियो। लोही रो रैलो पूंछता थको कैवण लागो, पद्मा थूं घणी कामगरी है।

पद्मा उजले मन सूं सेठ री चाकरी करै उणरै मन में धोलो दूध। बाप री उमर जिसो सेठ..किसो बेहम। कैवण लागी सेठजी आप म्हारा दातारमां ी बाप हो धरम री मूरत हो। दया रा सगार हो। जदै तो म्हारी अरज सुण बापू री तनखा वधाय दी अर घर फेरूं दे दियौ..।

म्हारे व्हैता थारै किण बात बैरो..सेठ दातारी दरसावतो बोल्यो। फेरूं बोल्यो बेटी पद्मा ड्राईंग रूप मांय पोछो लगायो कै नीं, पिछावणो सावल करियो कै नी..अबार कर देस्यूं सेठ जी पद्मा पडूत्तर दियो। 

नीं बेटो, अबै करदे, तालौ देयर म्हनै बारे जावणो है। जी सेठजी पैली करूं पद्मा कह्यो। पद्मा ड्राईंग रूप मांय गी, अपूठी ऊभी बिछावणो सावल करै ही। सेठ छानौ मानो मांय बड़ किंवाड़ औडाल दियो। पद्मा हाकबाकी व्हैगी, केवण लागी, सेठजी आडो किंयो औडाल दियो पण सेठ तो सुणियो न सांभलियो। जोर जबराई रे पाण कालो मूंडो कर दियो, पद्मा जोर सूं बांग मेली, रोई, पण कुण सुणै।कालजा मांय धपलका उठिया कांई इण खातर बधाई तनखा..? पद्मा रोवती रोवती मां रे आंचल सूं लिपटगी। बेटी री दसा देख बा सगली विगत जाणगी हीं। 

हरियो बीं टैम दारू री बोतल लेय पीवण सारू उतावो हो कै पद्मा री दसा देख चेता चूक व्हैगो। हाथ सूं बोतल छूटगी अर जमी माथै पटकण सूं फूटगी। 

मन ई मन विचार करण लागो स्यात् म्हैं दारू नीं पीतो तो आज आबरू नीं लूटीजती..। हरियो पण घणो रोयो। बो सौगन खाय ली। उमर भर दारू नीं पीवण री। 

सेठ री चाकरी छोड़ गांव आयगो। गाँव में खेती बाड़ी करै। इज्जत री दैनकी करै। पण जो पैली इज संभल जावतो पद्मा री आबरू नीं लूटीजाती। आ सांची है आबरू रो वेरी दारू।

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