Friday 9 September 2011

धापुड़ी


पन्नालाल कटारिया 'बिठौड़ा''
मझ थकी मांय ऐक ढाणी जठै नीठ पच्चीस तीसेक घर होसी। पक्का घर ढाणी मांय दोयक होसी। दूजा सगला झूंपा मांय जीवण बसर करै। पर्यावरण प्रदूषण रे नांव सूं अनजाण सगला मौज सू रैवे। अठै कठै हवा प्रदूषण, वाणी (ध्वनि) प्रदूषण अर जल प्रदूषण, अनजै नैड़ौ ई नी फट्क्यौ। सगला परिवार खेती कै ढांडा पालै अर इण माथै ईङज घर रो गुजरो काढ़ै। ठाणी सैर री सगली बांता सूं अनजाण। रेड़ियां दो तीनेक घरां माय जरूर मिल जावै। सगला मौज सूं हिलमिल रैवे।

मूंड़ा माथै अणूता नूर। करडी मेणत करै अर पेट पालै। मगलियो पण इण ढाणी रौ रैवासी। डील सूं लांठो अवधूत पर लत खोटी पड़गी दारू पिवण री, इण बाण के कारण गलियां माय रूलतो फिरै अर थोथी हथायां करतो रैवे। काम धंधा रौ तौ नांव ई नी घर। मांय पन्द्रे बीसेक छाल्या जरूरहै। जिणसू घर रो टबारो निठ गुड़कै।

मगलिया री छोरी धापुड़ी छाल्या चरावे। बरस पन्द्रेक री व्हैगी पण पोसाल रो मूंडो तक नीं देख्यो। पोसाण ढाणी सूं अलगी दूजै गांव मांय ही अर ढाणी मंय होया कांई व्हैतो। गांव रा घणखरा बूढिया तो ऐक ई जूनी रट लगायां बैठ्या ह कै भणाई करर किसो विलायत जावणो है। आपां ने तो औ ईज धंधौ करणो है।

अर छोरयां ने...? आंरो तो नांव लेता ई भंवारां आंख्यां तणीज जावै...कैवे छोरयां ने भणार के करणो है। ऐ तो पराए घर जासी अर लचूला चौकी करसी, ए तो परायो धन है पराएं घर जासी।

बखत री बात राज री योजना मुजब ढाणी मांय आखर केन्द्र खुल्यी। कनै गांव री ऐक भणी पढ़ी छोरी नीलम ने ओ आखर केन्द्र चलावण रो बीड़ो सूंपियौ। केई तिनां तांई वीं ढाणी रा मिनख..लुगाया ताबै नी आया पर उण आखर दू नीलम रे समझावण सू ढाणी रा घणकरा टाबरां ने केन्द्र माथै पढ़ावण सारू हामी भरी अर देखता देखता टाबर पढण लाग।

ऐक दिन री बात धापुड़ी-पगडाण्डी रै नैड़ै...ही, मांय छाल्यां चरावे ही...बा आपरी धुन में लाग्योड़ी गीत गावै ही। च्म्हारा छैल भंवर रौ कागदियौ म्हैं बाचूंला जी बाचूंला।छ इण ईज ओली बा कितरी बाल गाई ही।

आखर दूत नीलम बठी कर ढाणी जावै ही। नीमल की ताल ठमी च्थापुड़ी रो गीत सुणियौ अर माथो धुणियो, मन मांय कीं कैवण लगीछ आ अणपढ़ कियां कागद बांचेला, पर इणरो सुपनो म्है सांचो करूलां। अर धापुड़ी ने नैडी बुलाई, बीनै समझाई कि तू चावै ओ अबै आखर केन्द्र माथै आय सिंझ्वा रा पढ़ सकै अर थांरो कागद वांचण रौ सुपनौ पूरो कर सके।

धापुड़ी हंसती थकी कहवण लागी-किसी बांत करो हो...? अबै कुणसी पढण री ओस्था है...? अबै तो हाथ ई को तुले नीं...।

नीलम पण हंसती थकी समझावण लागी...गैली हुई है...? ए फकत थारौ मन रौ बहम है। थू म्हरै कनै आव म्है थनै भणाव देस्यूं।

नीमल री बात सुण धापुड़ी रे मन मांय भणाई करण रौ उमाव वापरियो। सिंझ्या तांई घरां जाव सगली विगत मां ने सुणाई। पर...बेटी री बात सुणता मावड़ री आंख्या सूं आंसुवां री धार बहवण लागी। बा रोवती थकी कैवा लागी-बेटी, म्हनै तो कीं ओलमो कोनीं पर धारा दारुड़िया बाप ने ठा पड़ी तो दोन्यू रे हाटकां रो चूरमो कर न्हाखसी। उणनै कुण समझासी। धापुड़ी फेरूं कैवण लागी च्माँ...बापू नितका दारू रा नसा ने हिंडता थका आधी तांई घरा पूगै...जितै म्हैं बैगी सी पाछी आय जास्यूं।छ बेटी रे मन री पीड़ अर उमाव ने देख माँ री छारी भरीजगी अर कह्यो च्आछौ बेटी...थूं जा।

अबै धापुड़ी आखर केन्द्र पर नितका जावण लागी। उमाव अर लगने पांण धापुड़ी बैगी सी अखबार रा आखर वांचण लागगी। पौथ्यां पण बांचण लागगी। माँ आपरी बेटी ने इयां देख घणी राजी व्ही। बा राज री योजना रा घणा बखाण करण लागी। ढाणी रा घणकरा भलाई पढ़ाई करण लागा। ढाली रा सगला मिनख, लुगायां, टाबर अबै नीमल आखर बैनजी कैवे। नीलम ने ढाणी मांय घणौ सन्मान दैवे।

बखत कितनै ई उडीकै कोनी अर बखत आया धापुड़ी मोट्यार व्हैगी कनै गाँव में धापुड़ी रो ब्याव व्हैगो। धापूड़ी रो धणी पण आखर बाचण जोगो ई हो। धापुड़ी घर रो सगलो काम काज आपरै बलबूतै करण लागी। धापुड़ी सासरा मांय सगलो रे मन भावण लागी। गांव मांय कोई बैठक कै मिटिंग व्है तो बठै धापुड़ी ने जरूर बुलावै।

अबकालै गांव रै सिरपंच रो ओहदो लुगायां खातर मिलियो आ खबर लाय री दाई गांव मांय फैलगी कि अबकालै गांव रो सिरपंच लुगाई बणसी। गांव मोटो हो इण सारू बठै पढी लुगायां रो टोटो नी हो पण इण ओहदा रे लायक सगला ने ओफकत धापुड़ी ई ज जंची।

गांव री बैठक व्ही। कुण ई धापुड़ी रे नांव माथै विरोध नीं जतायो अर गांव री सिरैपंच चुण दी। धापुड़ी उभी व्है हाथ जोड़ सगला गांव वालो रो आभार जतायौ। अर आपरा पैला भाषण में कह्यो-घ्म्हैं बालपणै सूं अणपढ़ एक छाल्यां चरावण आली धापुड़ी गांव रा सिरमोर ओहदा तांई पुंगला सूपना मांथ नीं सोच्यौ हो पण राज री योजना रे मुजब खुल्यौ आखर केन्द्र म्हनै इण ओहदा तांई पूगावण में महताऊ भौमका निभाई। आप सगलां सूं आ ईज कैवणी चावूं के आप आपरा टाबरां ने जरूर भणावो। धिनवाद।

धापुड़ी आपरै पियर (ढाणी) गई मां बापू ने धोक दोनी। आज मां रे ओढणी रो पल्लो (आंचल) खुशी रे आसुवां सूं तर व्हैगो हो। बापू पण घणौ राजी व्हियौ।

बेटी रे सिरैपंच बणण री खुसी मांय बो दारू छोड़ दियौ। क्यूंके अबै उणरी आंख्यां खुलगी। उणरो सिर ऊंचो व्हैगो हो। अबै बो सिरैपंच बेटी रो बाप कहिजै। धापुड़ी ढाणी मांय घर-घर जाय बूढ़ा बडेरां ने धोक दीनी अर टाबरां ने पढ़ावण री भुलावण देती रही। आखर केन्द्र पूकी आखर बैनजी नीलम सूं गलै मिली। कैवण लागी-च्बैनजी...धन है ओ राज अर इणरी योजनावां जिणरै मांय म्हैल छाल्यां चरावण आली धापुड़ी इण ओहदा तांई पुगी।

धापुड़ी खुद हुस्यार ही, इण खातर सगला कागद पानड़ा खुई ई बांचती अर गांव रो विका करायो। अबै उणने भणिया पढ़िया सिरैपंच पति कै दूजा मोटा रूंख री जरूरत नी पड़ी ही। धापुड़ी गांव रो अर परिवार रो नांव ऊंचौ कीनो। बा जई जावती अर बैठक होवती पैली टाबरां ने पढावण री भुलावण दैवती पछै दूजीं बंतल करती।

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