जाति | विशेष |
ढाढी | राजस्थान के जैसलमेंर व बाड़मेर जिले में रहने वाले ढाढी कलाकारों को मांगणियार के नाम से भी जाना जाता है। इनके प्रमुख वाद्य कमायचा व खड़ताल है। |
मिरासी | मारवाड़ में रहने वाले इन कलाकारों में से अधिकतर सुन्नी संप्रदाय को मानने वाले है। भाटों की तरह ये भी वंशावलीयों का बखान करते है। सारंगी इनका प्रमुख वाद्य है। |
भाट | मुख्यतः मारवाड़ में रहने पानी यह जाति अपने यजमानों की वंशावलियों का बखान करती है। |
रावल | यह जाती चारणों को अपना यजमान मानती है। |
भोपा | लोक देवीयों व देवताओं की स्तुती गा-बजाकर गुजर बसर करने वालों को भोपा कहते है। रावणहत्था भोपों का प्रमुख वाद्य है। |
लंगा | पश्चिमी राजस्थान में राजपूतों को अपना यजमान मानने वाली लंगा जाति की गायकी में शास्त्रीय संगीत का ताना बाना है। |
कंजर | घुमंतु जाति के ये कलाकार चकरी नृत्य करते है। |
जोगी | यह जाति नाथ संप्रदाय को मानती है। ये भर्तृहीर, शिवाजी का ब्यावला व पंडून का कड़ा गायन में अपना विशिष्ट स्थान रखती है। जोगी अपने गायन के साथ सारंगी वाद्य का प्रयोग करते है। |
भवाई | यह जाती भवाई नाट्य कला एवं इसके अंतर्गत बाघाजी व बीकाजी की नाटिकाएं व स्वांग करने हेतु प्रसिद्ध है। |
अन्य पेशेवर लोक संगीत जातियों में कालबेलिया, कलावंत, ढोली, राणा, राव, कामड़ व सरगरा प्रमुख है। |
Saturday, 11 February 2012
राजस्थानी लोक संगीत की विशेष पेशेवर जातियां
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thank a lot for this blog
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteRajji and Maheshji You both are most welcome:-)
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