राजस्थान एक जोशीला, मोहक राज्य है जहां परंपरा और राजसी शान के मिले‑जुले रंग‑चित्र रेत और मरुभूमि में बिखरे हुए हैं। अपने पूरे परिवेश में यह राज्य विभिन्नताओं से भरा हुआ है जहां के लोगों, रिवाजों, संस्कृति, पोशाक, संगीत, व्यवहार, बोलियों, खानपान और लोगों की कद‑काठी में रंगारंग विभिन्नताएं मौजूद हैं। राज्य के इतिहास की अनगिनत गाथाएं हैं – सड़क किनारे बसे हर गांव की शौर्य और बलिदान की अपनी कहानियां हैं। ये कहानियां हवाएं सुनाती हैं और रेत उन्हें उड़ाकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा देती है। राज्य का विहंगम दृश्य सच में बहुत जादुई है। एक तरफ दुनिया की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला अरावली है, तो दूसरी तरफ महान भारतीय रेगिस्तान का सुनहरा साम्राज्य मौजूद है। यह उपमहाद्वीप का एकमात्र रेगिस्तान है।
राजस्थान को हमेशा एक ऐसे राज्य के रूप में देखा जाता रहा है जहां आर्थिक और व्यापारिक विकास की अपार क्षमताएं मौजूद हैं। यहां के निवासियों, खासतौर पर मारवाड़ के लोगों को उनकी उद्यमशीलता के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता है। भूमि, खान, खनिज और सौर्य प्रकाश जैसे प्राकृतिक संसाधनों के विस्तृत भंडारण के बावजूद राज्य की विकास संभावनाओं के सामने संरचना तथा समृद्ध कौशल की खोज का अभाव उसकी उन्नति में बाधक है। हालिया महीनों में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने राजस्थान सरकार और वहां के निवासियों के सहयोग से कई परियोजनाएं शुरू की हैं ताकि राजस्थान के लोगों के कौशल, उद्यमिता और व्यापारिक सूझबूझ को सामने लाया जा सके। इन प्रयासों को सांस्थानिक विकास और कौशल उन्नयन के तौर पर समझा जा सकता है जिसमें औद्योगिक तथा निवेश विकास की सीमांकित पारिस्थितिकी‑प्रणाली का सृजन सम्मिलित है।
सांस्थानिक विकास
राजस्थान के लिए कोई भी योजना बनाते समय उसमें बुनियादी विचार यह होता है कि प्रस्तावित योजना और घरेलू भौतिक व मानव संसाधनों के बीच तालमेल हो। इस विचार को ध्यान में रखते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने जोधपुर में फुटवियर डिजाइनिंग एंड डेवलपमेन्ट इंस्टीट्यूट (एफडीडीआई) संबंधी 100 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजना का काम शुरू किया है। यह संस्थान 15 एकड़ में फैला है और एक हजार छात्रों को प्रशिक्षण देने की क्षमता रखता है। राजस्थान को चर्म उद्योग में एक पारंपरिक लाभ प्राप्त है क्योंकि इसका मजबूत अतीत है, मवेशियों के भारी संख्या में मौजूद होने से चमड़़े की उपलब्धता है और क्षेत्र में समृद्ध दस्तकारी परंपरा है। एफडीडीआई द्वारा उपलब्ध पाठ्यक्रम की भारी मांग है क्योंकि फैशन व्यापार, खुदरा प्रबंधन, पादुका प्रौद्योगिकी, कच्चा माल और सहायक सामग्री के क्षेत्र में रोजगार की भारी संभावनाएं हैं। एफडीडीआई के अन्य परिसरों में शत प्रतिशत नियोजन का रिकॉर्ड है। इसीलिए इस परियोजना से रोजगार में बढ़ोतरी होगी और राजस्थान देश का प्रमुख चर्म उद्योग केंद्र बन जाएगा। परिसर की अभी हाल में आधारशिला रखते हुए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री आनन्द शर्मा ने कहा, ‘संस्थान की स्थापना से राजस्थान के प्रतिभाशाली युवाओं को अपना कौशल बढ़ाने और रोजगार के बाजार में पूरी ताकत से प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलेगा।’
इसके अलावा एक और उल्लेखनीय पहल यह है कि जोधपुर में 18 करोड़ रुपये की लागत से स्पाइस पार्क बनाया जा रहा है जो वहां के घरेलू परिवेश के अनुरूप है। पार्क को 60 एकड़ भूभाग में बनाया जा रहा है जिसमें धनिया और मेथी जैसे दानेदार मसालों के लिए प्रसंस्करण सुविधाएं उपलब्ध होंगी। जीरे और सौंफ जैसे दानेदार मसालों का भी प्रसंस्करण किया जाएगा। जल्द ही इस मसाला पार्क को राजस्थान के निवासियों को समर्पित कर दिया जाएगा। इसी तरह का एक और मसाला पार्क कोटा के निकट रामगंज मंडी में भी स्थापित किया जाएगा। इस तरह के संस्थानों की स्थापना से व्यावसायिक समृद्धि का पुनर्सृजन होगा जिससे राज्य के लिए बेहतर उद्यम अवसर पैदा होंगे।
सीमांकित पारिस्थितिकी‑प्रणाली
अपनी स्थिति और आकार के कारण राजस्थान सेज़, औद्योगिक गलियारों या निर्माण/निवेश अंचल के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए कि प्रस्तावित दिल्ली‑मुंबई औद्योगिक गलियारे (डीएमआईसी) का 40 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान में आता है। डीएमआईसी का पहला बिन्दु खुशखेड़ा‑भिवाड़ी‑नीमराना निवेश क्षेत्र अपने अंतिम चरण में है और परिवर्तित संकल्पना योजनाएं प्रस्तुत कर दी गई हैं। राज्य के अपने हालिया दौरे पर श्री आनन्द शर्मा ने घोषणा की है कि द्वितीय बिन्दु (नगर) जोधपुर‑मारवाड़ क्षेत्र में होगा। उन्होंने कहा, ‘यदि भारत को एक औद्योगिक और निर्माण महाशक्ति संबंधी अपनी भावी भूमिका निभानी है तो इस प्रयास में राजस्थान को केंद्रीय भूमिका निभानी होगी।’
राजस्थान में कुल 10 सेज़ अधिसूचित किए गए हैं जिनमें 1105 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। इनमें राज्य के कम से कम दस हजार लोगों को रोजगार प्राप्त है। वर्ष 2010‑11 में राज्य स्थित सेज का निर्यात 900 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। ये सेज जिन क्षेत्रों में सक्रिय हैं, उनमें सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सेवाएं, रत्न व आभूषण तथा दस्तकारी शामिल हैं। ये सीमांकित पारिस्थितिकी‑प्रणालियां इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां संरचना, श्रम, कौशल और निवेशक अनुकूल माहौल के संबंध में उद्यमी निवेशकों की जरूरतों के मुताबिक समस्याओं का निदान समेकित रूप में उपलब्ध है। स्पष्ट है कि इस तरह की पहलों से राज्य में उद्योग और उद्यमशीलता की एक मजबूत संस्कृति पैदा होगी। घोषणा करते हुए मंत्री महोदय ने कहा, ‘प्रस्तावित राष्ट्रीय निर्माण और निवेश क्षेत्रों सहित डीएमआर्इसी और विभिन्न सेज़ केंद्र राज्य को प्रगति की राह पर तेजी से आगे बढ़ाने में सहायक होंगे।’
नीति के अंतर्गत नीमराना में राष्ट्रीय निर्माण एवं निवेश क्षेत्र (एनएमआर्इजेड) की स्थापना, व्यापार नियमावली का सरलीकरण और उसे तर्कसंगत बनाने, बीमार इकाईयों को बंद करने का साधारण और शीघ्रगामी तरीका तैयार करने, हरित प्रौद्योगिकी सहित प्रौद्योगिकी के विकास के लिए वित्तीय और सांस्थानिक संरचना का निर्माण, औद्योगिक प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन के उपाय करने तथा निर्माण इकाईयों व संबंधित गतिविधियों में हिस्सेदार और पूंजी निवेश प्रोत्साहन को प्रस्तावित किया गया है।
एनएमआईजेड की स्थापना औद्योगिक रणनीति के लिए प्रमुख अस्त्र होगा। इन क्षेत्रों को एकीकृत औद्योगिक टाउनशिप के रूप में विकसित किया जाएगा जहां शानदार संरचनाएं और क्षेत्र आधारित भूमि उपयोग उपलब्ध होगा। इन क्षेत्रों का क्षेत्रफल दो हजार एकड़ का होगा और इन्हें अपेक्षित पारिस्थितिकी‑प्रणाली के साथ विशेष प्रयोजन वाहकों (एसपीवी) द्वारा विकसित तथा प्रबंधित किया जाएगा। प्रत्येक एसपीवी एनएमआईजेड के विकास, वृद्धि, संचालन और प्रबंधन का काम देखेगा। सरकार एनएमआईजेड का विकास इस तरह करना चाहती है जहां आवश्यक संरचना उपलब्ध हो और देश में निर्माण गतिविधियों में तेजी लाने का वातारण मौजूद हो।
कौशल उन्नयन
देश में युवाओं की तादाद सबसे अधिक है और इसका लाभ लेने के लिए कौशल उन्नयन तथा शिक्षा को रोजगारपरक बनाने का कार्य राष्ट्र की प्राथमिकता बन गया है। घरेलू संस्कृति और संसाधन घटकों को मद्देनजर रखते हुए, इस दिशा में किए जाने वाले प्रयासों में राज्य की शक्ति परिलक्षित होती है। ग्रामीण चर्म कारीगर समूहों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य में एक योजना चल रही है जिसका नाम ‘कारीगरों का समर्थन है।’ योजना की लागत 40 करोड़ रुपये है। ग्रामीण चर्म कारीगर राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अटूट अंग हैं। इस तरह के कार्यक्रमों का उद्देश्य स्थानीय रोजगार सृजन और निर्यात के अवसर पैदा करना है। चमड़े के कारीगरों के डिजाइन कौशल को बढ़ाने तथा कच्चा माल और विपणन सहयोग करने के लिए सरकार उपाय करती है। यह आमूल सहयोग है जिसमें केंद्रीय संसाधन केंद्रों की स्थापना, उत्पाद और डिजाइन विकास, ब्रांड प्रोत्साहन तथा तैयार माल को बाजार में बेचने के लिए संपर्कों का विकास शामिल है। इसी तरह नीमराना क्र्यू बोस अकादमी नामक परियोजना है जिसका स्पष्ट लक्ष्य है क्षेत्र के निवासियों में से 6,500 से अधिक निवासियों को रोजगार मुहैया करवाना। पिछले छह माह में अकादमी ने 700 लोगों को प्रशिक्षण दिया और उनमें से अधिकतर लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ।
वैश्विक आर्थिक मंदी के बावजूद भारत ने अपनी विकास दर को सतत कायम रखा। इस गति को बनाए रखने के लिए समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि औद्योगिक विकास, संरचना में प्रतिबद्ध निवेश और कौशल उन्नयन संभव हो सके। राजस्थान जैसे राज्यों की भूमिका बहुत अहम है क्योंकि वे इस गति को बनाए रखने के लिए ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं। इस महत्वपूर्ण राज्य में विकास और वृद्धि संबंधी अहम क्षेत्रों पर ध्यान देना सही दिशा में उठाया गया कदम है। युवाओं के रोजगार और उन्नति के लिए केवल सहायक अवसरों द्वारा ही राज्य अपनी वास्तविक जातीयता, करिश्मे और जीवन में व्याप्त पारंपरिक सहनशीलता को सार्थक कर सकता है।
Sirji ruk kese gaye.....
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