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1. हल्के भूरे रंगों के (कपिष वर्ण) मिट्टी के बर्तनों पर काले व नीले रंग के चित्र यहां पर बनते थे। मकान पत्थरों से बनाये जाते थे, ईंटों का प्रयोग नहीं होता था। ताम्र उपकरण और आभूषण इस सभ्यता की शोभा बढ़ाते थे।
- ✓ गणेश्वर
- कालीबंगा
- आहड़
- बालाथल
गणेश्वर, राजस्थान के सीकर ज़िला के अंतर्गत नीम-का-थाना तहसील में ताम्रयुगीन संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण स्थल है। गणेश्वर से प्रचुर मात्रा में जो ताम्र सामग्री पायी गयी है, वह भारतीय पुरातत्त्व को राजस्थान की अपूर्व देन है। ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में से यह स्थल प्राचीनतम स्थल है। खेतड़ी ताम्र भण्डार के मध्य में स्थित होने के कारण गणेश्वर का महत्त्व स्वतः ही उजागर हो जाता है। यहाँ के उत्खनन से कई सहस्त्र ताम्र आयुध एवं ताम्र उपकरण प्राप्त हुए हैं। इनमें कुल्हाड़ी, तीर, भाले, सुइयाँ, मछली पकड़ने के काँटे, चूड़ियाँ एवं विविध ताम्र आभूषण प्रमुख हैं। इस सामग्री में 99 प्रतिशत ताँबा है। ताम्र आयुधों के साथ लघु पाषाण उपकरण मिले हैं, जिनसे विदित होता है कि उस समय यहाँ का जीवन भोजन संग्राही अवस्था में था। यहाँ के मकान पत्थर के बनाये जाते थे। पूरी बस्ती को बाढ़ से बचाने के लिए कई बार वृहताकार पत्थर के बाँध भी बनाये गये थे। कांदली उपत्यका में लगभग 300 ऐसे केन्द्रों की खोज़ की जा चुकी हैं, जहाँ गणेश्वर संस्कृति पुष्पित-पल्लवित हुई थी।
2. प्राचीन सभ्यता ‘गिलूण्ड’ के अवशेष किस नदी के किनारे और किस जिले में मिले है ?
- रूपारेल, भरतपुर
- ✓ बनास, राजसमन्द
- लूनी, पाली
- खारी, भीलवाड़ा
आघाटपुर-आयड़ सभ्यता का एक महत्वपूर्ण स्थान राजसमन्द जिले में गिलूण्ड है जो बनास नदी के तट पर बसा है। इस स्थान का उत्खनन सन् १९५९-६० में श्री बी.बी. लाल के निर्देशन में हुआ। तीसरा महत्वपूर्ण स्थान है बालाथल जो उदयपुर जिले के वल्लभनगर तहसील में स्थित है। यह उदयपुर से उत्तर पूर्व लगभग ४० किलोमीटर दूर है जिसका उत्खनन श्री बी.एम. मिश्र के निर्देशन में १९९३-९४ में हुआ। यह टीला बालाथल गांव के पास है जो तीन हेक्टर क्षेत्र में फैला है। इस टीले का उत्तरी आधा भाग सुरक्षित है तथा दक्षिणी आधा भाग एक स्थानीय कृषक द्वारा समतल कर दिया गया है और इस पर खेती होती है। (पुरातत्व विमर्श-जयनारायण पाण्डेय-पृ.४५१)
- विजयसिंह पथिक
- ✓ सागरमल गोपा
- सुमनेश जोशी
- जयनारायण व्यास
- खाफी खां
- ✓ कालीराय कायस्थ
- ज्वाला सहाय
- मूलचंद मुंशी
- जीवाधर
- ✓ सदाशिव
- रघुनाथ
- कृष्ण भट्ट
- फारसी
- डिंगल
- ✓ संस्कृत
- पिंगल
- ✓ जेम्स टॉड
- डफ ग्रांट
- हरयन गोल्ज
- जी.एच. ट्रेबर
कर्नल टॉड द्वारा भारत भ्रमण के अनुभव पर आधारित यह पुस्तक 1839 में उनकी मृत्यु (1835) के पश्चात प्रकाशित हुई थी।
- अलवर
- डूंगरपुर
- जयपुर
- ✓ मेवाड़
मेवाड़ में मुद्रा का प्रचलन - १८ वीं सदी के पूर्व मेवाड़ में मुगल शासको के नाम वाली “सिक्का एलची’ का प्रचलन था, लेकिन औरंगजेब के बाद मुगल साम्राज्य का प्रभाव कम हो जाने के कारण अन्य राज्यों की तरह मेवाड़ में भी राज्य के सिक्के ढ़लने लगे। १७७४ ई. में उदयपुर में एक अन्य टकसाल खोली गई। इसी प्रकार भीलवाड़ा की टकसाल १७ वीं शताब्दी के पूर्व से ही स्थानीय वाणिज्य- व्यापार के लिए “भीलवाड़ी सिक्के’ ढ़ालती थी। बाद में चित्तौड़गढ़, उदयपुर तथा भीलवाड़ा तीनों स्थानों के टकसालों पर शाहआलम (द्वितीय) का नाम खुदा होता था। अतः यह “आलमशाही’ सिक्कों के रुप में प्रसिद्ध हुआ। राणा संग्रामसिंह द्वितीय के काल से इन सिक्कों के स्थान पर कम चाँदी के मेवाड़ी सिक्के का प्रचलन शुरु हो गया। ये सिक्के चित्तौड़ी और उदयपुरी सिक्के कहे गये। आलमशाही सिक्के की कीमत अधिक थी।
१०० आलमशाही सिक्के = १२५ चित्तौड़ी सिक्के
उदयपुरी सिक्के की कीमत चित्तौड़ी से भी कम थी। आंतरिक अशांति, अकाल और मराठा अतिक्रमण के कारण राणा अरिसिंह के काल में चाँदी का उत्पादन कम हो गया। आयात रुक गये। वैसी स्थिति में राज्य- कोषागार में संग्रहित चाँदी से नये सिक्के ढ़ाले गये, जो अरसीशाही सिक्के के नाम से जाने गये। इनका मूल्य था–
१ अरसी शाही सिक्का = १ चित्तौड़ी सिक्का = १ रुपया ४ आना ६ पैसा।
राणा भीम सिंह के काल में मराठे अपनी बकाया राशियों का मूल्य- निर्धारण सालीमशाही सिक्कों के आधार पर करने लगे थे। इनका मूल्य था —
सालीमशाही १ रुपया = चित्तौड़ी १ रुपया ८ आना
आर्थिक कठिनाई के समाधान के लिए सालीमशाही मूल्य के बराबर मूल्य वाले सिक्के का प्रचलन किया गया, जिन्हें “चांदोड़ी- सिक्के’ के रुप में जाना जाता है। उपरोक्त सभी सिक्के चाँदी, तांबा तथा अन्य धातुओं की निश्चित मात्रा को मिलाकर बनाये जाते थे। अनुपात में चाँदी की मात्रा तांबे से बहुत ज्यादा होती थी।
इन सिक्कों के अतिरिक्त त्रिशूलिया, ढ़ीगला तथा भीलाड़ी तोबे के सिक्के भी प्रचलित हुए। १८०५ -१८७० के बीच सलूम्बर जागीर द्वारा “पद्मशाही’ ढ़ीगला सिक्का चलाया गया, वहीं भीण्डर जागीर में महाराजा जोरावरसिंह ने “भीण्डरिया’ चलाया। इन सिक्कों की मान्यता जागीर लेन- देन तक ही सीमित थी। मराठा- अतिक्रमण काल के “मेहता’ प्रधान ने “मेहताशाही’ मुद्रा चलाया, जो बड़ी सीमित संख्या में मिलते हैं।
राणा स्वरुप सिंह ने वैज्ञानिक सिक्का ढ़लवाने का प्रयत्न किया। ब्रिटिश सरकार की स्वीकृति के बाद नये रुप में स्वरुपशाही स्वर्ण व रजत मुद्राएँ ढ़ाली जाने लगी। जिनका वजन क्रमशः ११६ ग्रेन व १६८ ग्रेन था। १६९ ग्रेन शुद्ध सोने की मुद्रा का उपयोग राज्य- कोष की जमा – पूँजी के रुप में तथा कई शुभ- कार्यों के रुप में होता था। पुनः राज्य कोष में जमा मूल्य की राशि के बराबर चाँदी के सिक्के जारी कर दिये जाते थे। इसी समय में ब्रिटिशों का अनुसरण करते हुए आना, दो आना व आठ आना, जैसे छोटे सिक्के ढ़ाले जाने लगे, जिससे हिसाब- किताब बहुत ही सुविधाजनक हो गया। रुपये- पैसों को चार भागों में बाँटा गया पाव (१/२), आधा (१/२), पूण (१/३) तथा पूरा (१) सांकेतिक अर्थ में इन्हें ।, ।।, ।।। तथा १ लिखा जाता था। पूर्ण इकाई के पश्चात् अंश इकाई लिखने के लिए नाप में s चिन्ह का तथा रुपये – पैसे में o ) चिन्ह का प्रयोग होता था।
ब्रिटिश भारत सरकार के सिक्कों को भी राज्य में वैधानिक मान्यता थी। इन सिक्कों को कल्दार कहा जाता था। मेवाड़ी सिक्कों से इसके मूल्यांतर को बट्टा कहा जाता था। चांदी की मात्रा का निर्धारण इसी बट्टे के आधार पर होता था। उदयपुरी २.५ रुपया को २ रुपये कल्दार के रुप में माना जाता था। १९२८ ई. में नवीन सिक्कों के प्रचलन के बाद तत्कालीन राणा भूपालसिंह ने राज्य में प्रचलित इन प्राचीन सिक्कों के प्रयोग को बंद करवा दिया।
9. राजस्थान राज्य अभिलेखागार यहां स्थित है।
- ✓ बीकानेर
- जयपुर
- अजमेर
- जोधपुर
बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार देश के सबसे अच्छे और विश्व के चर्चित अभिलेखागारों में से एक है. इस अभिलेखागार की स्थापना 1955 में हुई और यह अपनी अपार व अमूल्य अभिलेख निधि के लिए प्रतिष्ठित है।
- जयनारायण व्यास
- हीरालाल शास्त्री
- ✓ विजयसिंह पथिक
- तेजकवि
- ब्ल्यू पोटरी
- ✓ मीनाकारी
- तलवार बाजी
- घुड़सवारी
सरदार कुदरत सिंह मीनाकारी में विशेष उपलब्धि हेतु 1988 में पद्मश्री से सम्मानित हो चुके है।
- पर्यटन सुविधा झुटाना
- ✓ सड़क निर्माण
- झील संरक्षण
- कन्टेनर संचालन
- उद्योग विकास केन्द्रों की स्थापना करना
- औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करना
- ✓ लघु उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति करना
- मध्यम व बड़े उद्योगों को वित्तीय सहायता देना
- ✓ वेदान्ता
- रिलायन्स
- टाटा
- बिड़ला
- दिल्ली
- ✓ कोलकाता
- मुम्बई
- चैन्नई
हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड की स्थापना कोलकाता में 9 नवम्बर,1967 को हुई थी । यह भारत की एकमात्र शीर्षस्थ एकीकृत बहु इकाई ताम्र उत्पादक कंपनी है जो ताम्र कैथोड, निरंतर ढलाई वायर रॉड और वायर बार के खनन, सज्जीकरण, प्रगालन, परिष्करणन और निर्माण के बहुत सारे कार्य करती है ।
- 30 लाख
- ✓ 50 लाख
- 70 लाख
- 80 लाख
- चन्द्रभागा पशुमेला, झालरापाटन
- जसवन्त पशुमेला, भरतपुर
- रामदेव पशुमेला, नागौर
- श्री शिवरात्रि पशुमेला, करौली
- गाय
- ✓ बकरी
- भेड़
- भैंस
- मनोहर थाना
- ✓ बीकानेर
- उदयपुर
- सांचोर
- ✓ नाहर
- बिन्दौरी
- चकरी
- घूमर
भीलवाडा से 14 किलोमीटर दूर स्थित माण्डल कस्बे में प्राचीन स्तम्भ मिंदारा पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ से कुछ ही दूर मेजा मार्ग पर स्थित प्रसिद्ध जगन्नाथ कछवाह की बतीस खम्भों की विशाल छतरी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व का स्थल हैं। छह मिलोकमीटर दूर भीलवाडा का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल मेजा बांध हैं। होली के तेरह दिन पश्चात रंग तेरस पर आयोजित नाहर नृत्य लोगों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र होता हैं। कहते हैं कि शाहजहाँ के शासनकाल से ही यहाँ यह नृत्य होता चला आ रहा हैं। यहां के तालाब के पाल पर प्राचीन शिव मंदिर स्थित है। जिसे भूतेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
- मेनाल
- ✓ खारी
- मानसी
- बनास
- बाँसवाड़ा, मन्दसौर
- ✓ कोटा, रतलाम
- धौलपुर, ग्वालियर
- झालावाड़, गुना
- बनास
- चम्बल
- लूनी
- ✓ माही
- 14
- ✓ 11
- 13
- 12
- पर्यटन सुविधा
- ✓ पेयजल सुविधा
- नदी संरक्षण
- सिंचाई सुविधा
ग्रामीण जनता की पेय-जल की समस्या को हल करने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा स्व-जलधारा कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत १० प्रतिशत समुदाय या ग्राम-पंचायत की भागीदारी होगी और ९० प्रतिशत केन्द्र सरकार पैसा देगी।
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अत्यंत रोचक एवं ज्ञानवर्धक सामग्री।
ReplyDeletelike
ReplyDeletei likeeeeeeeeeeeeeeeee thisssssssssssssssssss siteeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee
ReplyDeletesir very nice qu.......................
ReplyDeletevery importaint qu..........
ReplyDeleteQ 17 ans.: D
ReplyDeleteSuper sir
ReplyDeleteSir plz rajsthan ke bare me 40% sawal aayenge
ReplyDeleteVERY NICE
ReplyDeletekau thak rahe ho.....
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