Friday 9 September 2011

राजस्थान में महिलाओं की स्थिति


वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार राजस्थान की कुल जनसंख्या 5 करोड़ 65 लाख में से 48 प्रतिशत (लगभग 2 करोड़ 71 लाख) जनसंख्या महिलाओं की है। राजस्थान में महिलाओं की जनसंख्या देश की महिला जनसंख्या का 5.46 प्रतिशत है। राजस्थान में वर्ष 1991 की तुलना में वर्ष 2001 में जनसंख्या आधिक्य 1 करोड़ 20 लाख व्यक्ति रहा है। इस अवधि में महिला जनसंख्या में वृद्धि दर 29.34 रही वहीं पुरूष जनसंख्या में वृद्धि दर 28.01 अंकित की गई। राजस्थान में लिंगानुपात वर्ष 1991 की तुलना में वर्ष 2001 में 910 से बढ़कर 922 महिलाएॅ प्रति 1000 पुरूष आंका गया है। वर्ष 1901 से लेकर लिंगानुपात की स्थिति निम्नप्रकार रही है:–

उपरोक्त तालिका से राजस्थान में लिंगानुपात वर्ष 2001 में महिलाओं के पक्ष में रहा है। वस्तुत: 1951 और 2001 में लिंगानुपात वर्ष 1901 से लेकर महिलाओं के पक्ष में रहा। ग्रामीण क्षेत्रों में अनुपात शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा अच्छा रहा है। वर्ष 1961 के पश्चात शहरी क्षेत्रों में लिंगानुपात में कमी आई है।


इसके अतिरिक्त 6 वर्ष से कम आयु वर्ग में 1991 की तुलना में 2001 में लिंगानुपात में कमी आई है। वर्ष 1991 में जहॉं 6 वर्ष से कम आयु वर्ग में जहॉ 1000 लड़कों की संख्या पर 916 लड़किया थी वह 2001 में घटकर 909 रह गई। 6 वर्ष तक के आयु वर्ग में लिंगानुपात में अंतर की स्थिति निम्न तालिकाओं से अधिक स्पष्ट हो सकेगी–

तालिका 2 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में लिंगानुपात अधिक (22) रहा है। तालिका 3 से स्पष्ट है कि अनुसूचित जनजातियों के मुकाबले लिंगानुपात का अंतर सामान्य तथा अनुसूचित जातिवर्गों में अधिक रहा है। 6 वर्ष तक के आयु वर्ग में बढ़ते हुए लिंगानुपात के मुख्य कारणों में एक भ्रूण हत्या मानी जाती है। राज्य सरकार द्वारा भ्रूण हत्या रोकने और लड़कियों का जन्म और उनके जीवित रहने की स्थिति में सुधार लाने के विशेष प्रयास किये गये हैं। तथापि इस समस्या का समाधान जन–जागृति और जन सहयोग से ही संभव हो सकेगा।

जहॉ तक साक्षरता का प्रश्न है, उसमें राजस्थान में 1991–2001 के दशक में काफी प्रगति हुई है। साक्षरता की दर वर्ष 1991 में 38.55 थी जो 2001 में 61.03 हो गई। महिला साक्षरता की दर इस दौरान 1991 में 20.44 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में दुगनी से भी अधिक अर्थात 44.34 प्रतिशत तक पहुच गई। ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह प्रगति आश्चर्यजनक ही मानी जा सकती है। जहॉं 1991 में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला साक्षरता दर 9.2 थी वह 2001 में 37.74 पर आ गई।

परंतु केवल साक्षरता की दर बढ़ने से ही लड़कियों में शिक्षा का आधिक्य नहीं माना जा सकता जब तक कि औपचारिक शिक्षा के माध्यम से अधिक से अधिक लड़किया शिक्षा प्राप्त नहीं करती। यह देखने में आया है कि लड़कों की अपेक्षा लड़कियॉ अधिक संख्या में बीच में स्कूल छोड़ देती है। लड़कियों में ड्रॉप आउट रेट कम किए जाने की आवश्यकता है।

भारतीय संविधान में 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से महिलाओं को पंचायत राज संस्थाओं और स्थानीय निकायों में प्रतिनिधित्व के अधिक अवसर प्रदान किए गए हैं। इसके माध्यम से महिलाओं के लिए सशक्तीकरण का मार्ग प्रशस्त होगा।

परंतु मानव विकास संकेतकों (Human Development Indicator) की दृष्टि से राजस्थान में महिलाओं की आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार की महाी आवश्यकता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण–3 (NFHS.3) के अनुसार राजस्थान में 15 से 49 वर्ष की विवाहित महिलाओं में एनिमिया की दर 53.01 थी। जिसमें से 17.9 महिलाए गंभीर रूप से एनिमिया से पीडि़त थी। इसी रिपोर्ट के अनुसार 36.7 प्रतिशत महिलाए क्रॉनिक एनर्जी डेफिशिएंसी (CED) से पीडि़त पाई गई। कुल महिलाओं में से 20.2 प्रतिशत महिलाए क्रॉनिक एनर्जी डेफिशिएंसी (CED) और एनिमिया दोनों से प्रभावित थी। जबकि यह दर राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण–2 (NFHS-2) में 49 प्रतिशत अंकित की गई थी। बच्चों में (3 वर्ष तक के) एनिमिया की दर NFHS.2 में 82 प्रतिशत अंकित की गई थी जबकि NFHS.3 में यह दर 79.06 अंकित की गई। 15 से 49 वर्ष तक की गर्भवती महिलाओं में NFHS.3 के अनुसार एनिमिया का प्रतिशत 61.2 पाया गया। 15 से 49 आयु वर्ष की महिलाआ में कुपोषण का प्रतिशत 33.6 अंकित किया गया है। महिलाओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से यह स्थिति गंभीर है और यहीं कारण है कि राजस्थान में मातृ मृत्यु दर यद्यपि कम होकर 445 प्रति 1 लाख जीवित जन्म(SRS-2004) अंकित की गई है तथापि यह दर राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।

राजस्थान की ग्रामीण जनसंख्या शनै:–शनै: शहरों की ओर उन्मुख हो रही है। वर्ष 1991 में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत 78.95 प्रतिशत था वह वर्ष 2001 में घटकर 76.02 प्रतिशत रह गया। यह इस बात का द्योतक है कि आजाीविका के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से जनसंख्या का पलायन शहरी क्षेत्रों में हो रहा है। इस कारण महिलाओं को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं। इन्हें सामान्यत: दो वर्गों में बांटा जा सकता है:–(1) जहॉं महिलाये अपने परिवार के साथ शहर में बसती है उनके सामने नवीन सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति उत्पन्न होती हैै। कच्ची गंदी बस्तियों में रहने की विवशता के कारण अस्वस्थकारी वातवरण में जीवन यापन करना पड़ता है। इन परिस्थितियों का उनके स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पडने के साथ–साथ सांस्कृतिक व सामाजिक विरोधाभास का प्रभाव भी पड़ता है। (2) दूसरे यदि महिला अपने गॉंव में रहती है तो उसे समस्त कार्य (कृषि संबंधी, पशुपालन, पारिवारिक देखभाल) अकेले करने होते हैं। अकेली महिला यौन प्रताड़ना का शिकार भी आसानी से हो सकती है।

राजस्थान में महिलाए कई सामाजिक और आर्थिक विषमताओं से ग्रसित है। बड़ी संख्या में बाल विवाह होने के कारण कम आयु की लड़कियों को विकास और शिक्षा के पूरे अवसर नहीं मिल पाते (रा.पा.स्वा.स.–3 (NFHS-3) के अनुसार 20–24 वर्ष आयुवर्ग की लड़कियों में 57.01 प्रतिशत का विवाह 18 वर्ष की आयु पूर्ण होने से पूर्व ही कर दिया जाता है) इससे किशोरावस्था में गर्भधारण के कारण लड़कियों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसीलिए महिलाओं में एनिमिया के लक्षण अधिक पाये जाते हैं। महिलाए अधिकांशत: अपने जीवन निर्वाह के लिए पुरूषों पर आश्रित रहती है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण–3 के अनुसार राजस्थान में 46.03 प्रतिशत विवाहित महिलाए पारिवारीक स्थिति में सताई हुई अनुभव करती है। घरेलू स्तर पर महिलाआ के साथ दुव्र्यव्हार, दहेज के कारण महिलाओं को सताया जाना और यौन शौषण ऐसी स्थितियॉं है जिनके कारण महिलाए सामान्य रूप से जीवन–यापन करने में अपने आपको असमर्थ पाती है। 

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