Friday, 17 February 2012

राजस्थान में वर्षा जल संरक्षण की शब्दावली


शब्द
शाब्दार्थ
आगौर (पायतान)
वर्षा जल को नाड़ी या तालाब में उतारने के लिए उसके चारों ओर मिट्टी को दबाकर आगोर (पायतान) बनाया जाता है।
टांका
वर्षाजल एकत्रित करने के लिए बनाया गया हौद।
नाडी
छोटी तलैया जिसमें वर्षा का जल भरा जाता है।
नेहटा (नेष्टा)
नाडी या तालाब से अतिरिक्त जल की निकासी के लिए उसके साथ नेहटा बनाया जाता है जिससे होकर अतिरिक्त जल निकट स्थित दूसरी नाड़ी, तालाब या खेत में चला जाये।
पालर पाणी
नाडी या टांके में जमा वर्षा का जल।
बावड़ी
वापिका, वापी, कर्कन्धु, शकन्धु आदि नामों से उद्बोधित। पश्चिमी राजस्थान में इस तरह के कुएं (बावडी) खोदने की परम्परा ईसा की प्रथम शताब्दी के लगभग शक जाति अपने साथ लेकर आई थी। जोधपुर व भीनमान में आज भी 700-800 ई. में निर्मित बावडियां मौजूद है।
बेरी
छोटा कुआं, कुईयां, जो पश्चिमी राजस्थान में निर्मित हैं।
मदार 
नाडी या तालाब में जल आने के लिए निर्धारित की गई धरती की सीमा को मदार कहते हैं। मदार की सीमा में मल-मूत्र त्याग वर्जित होता है।


Visit these blogs for more innovative content for 
All Competitive Examinations

(Content on Geography, History, Polity, Economy, Biology, Physics, Chemistry Science & Technology, General English, Computer etc. for Examinations held by UPSC - CSAT, CDS, NDA, AC; RPSC And Other  State Public Service Commissions, IBPS - Clercial & PO, SBI, RRB, SSC - HSL, CGL etc.)

(Special Content for RAS 2013 Prelims & Mains)

(Learn through Maps, Diagrams & Flowcharts)

BEST WISHES
RAJASTHAN STUDIES
Blog on Rajasthan General Knowledge (GK)  for all Competitive Examinations Conducted by Rajasthan Public Service Commission (RPSC) and other Governing Bodies.


No comments:

Post a Comment

Rajasthan GK Fact Set 06 - "Geographical Location and Extent of the Districts of Rajasthan" (राजस्थान के जिलों की भौगोलिक अवस्थिति एवं विस्तार)

Its sixth blog post with new title and topic- "Geographical Location and Extent of the Districts of Rajasthan" (राजस्थान के ...